Sunday, September 21, 2025

गरीबों की मदद करने से मिलता है सम्मान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

राजा भोज का जन्म परमार वंश में हुआ था। वह खुद बहुत बड़े साहित्यकार, कला प्रेमी और गुणग्राहक थे। उन्होंने 84 ग्रंथों की रचना की थी, लेकिन वर्तमान में केवल 21 ही प्राप्य हैं। उन्होंने भोजपुर को अपनी राजधानी बनाया था जिसे बाद में भोजपाल और वर्तमान में भोपाल कहा जाता है। 

यह मध्य प्रदेश की राजधानी है। राजा भोज ने 1010 से 1055 तक शासन किया था। धारा नगरी के राजा सिंधुल के यह पुत्र थे। कहते हैं कि यह जब पांच साल के थे, तब इनके पिता सिंधुल अपने छोटे भाई मुंज को राजकाज सौंपकर स्वर्गवासी हो गए थे। मुंज इनकी हत्या करके निष्कंटक राज्य करना चाहता था। इसी लिए उसने बंगाल के वत्सराज को इन्हें मारने के लिए बुलाया। वत्सराज ने मारने की जग एक हिरन को मारकर बताया कि उसने भोज को मार दिया है। 

इसके बाद मुंज के मन में  अपने भतीजे के प्रति प्यार जागा और वह बिलख कर रोने लगा। तब वत्सराज ने सच्चाई बताई। उसी समय मुंज ने भोज को राजा बना दिया और खुद पत्नी के साथ जंगल चले गए। एक बार की बात है। भोज अपने महल में सो रहे थे। उनके सपने में एक दिव्य पुरुष आए और उनको अपने साथ उस बगीचे में ले गए जिस पर उन्हें अभिमान था। उस पुरुष ने एक पेड़ को छुआ, तो सारा बगीचा सूख गया। 

इसके बाद वह उन्हें उस मंदिर में ले गया जिसे बनवाने में काफी पैसा खर्च किया गया। उसे छूते ही वह भी काला पड़ गया। तब उस पुरुष ने कहा कि मंदिर, उपवन बनाने और उस पर अभिमान करने की जगह गरीबों की सेवा सहायता करने से लोगों में प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसके बाद भोज की नींद खुल गई। उसके बाद भोज ने प्रजा की भलाई के काम करने शुरू किए।

स्वच्छता अभियान तो चला लेकिन नहीं दिखी सफाई

अशोक मिश्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर हरियाणा के सभी जिलों में मंत्रियों, अधिकारियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने 17 सिंतबर बड़े जोरशोर से सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाया। पीएम मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में भाजपा ने सेवा पखवाड़ा मनाने का ऐलान किया है। पूरे पखवाड़े प्रदेश में सेवा की जाएगी। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखने में आया है कि जहां स्वच्छता अभियान चलाया गया,वह स्थान अपेक्षाकृत पहले से ही साफ सुथरे थे। जिन स्थानों पर गंदगी थी, कूड़ा करकट भरा पड़ा था, उस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया। 

साफ सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाने का कोई मतलब नहीं है। प्रशासन की निगाह उन जगहों पर क्यों नहीं पड़ती है जो इलाके पहले से ही गंदे हैं। शहरों में बहुत सारी जगहें ऐसी हैं जिनके किनारे से गुजरना, किसी मुसीबत से कम नहीं है। कुत्ते और लावारिस पशु इन जगहों पर अपने भोजन तलाशते हुए मिल जाते हैं। इन पशुओं की वजह से कई बार हादसे भी हो जाते हैं। कई लोगों की जान भी ऐसे हादसों में जा चुकी है। 

वैसे यह बात सही है कि मंत्रियों, अधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया है, लेकिन इससे कितने लोग जागरूक हो पाएंगे यह कह पाना बहुत मुश्किल है। सबने सफाई अभियान में भाग लेकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि प्रदेश को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। शहर के गंदा रहने से लोगों के बीमारियों से ग्रसित होने की आशंका रहती है, वहीं शहर की छवि भी खराब होती है। 

हालत यह है कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों में थोड़ी सी बरसात होने पर सड़कों पर पानी जमा हो जाता है। सड़कों पर खुले मैनहोल और सीवेज बरसात में जानलेवा साबित हो रहे हैं। अब जब बरसात विदा हो रही है, इसके बावजूद कई जगहों पर सड़कों पर पानी भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में शहरों में स्वच्छता अभियान चलाने का कितना फायदा होगा, इस पर भी विचार करना होगा। ऐसी स्थिति में सबसे उपयुक्त यही होगा कि बरसात खत्म होते ही यदि स्थानीय निकाय के अधिकारी-कर्मचारी सहित स्वयंसेवी संस्थाएं स्वच्छता अभियान चलाएं तो नगरों को साफ सुथरा रखा जा सकता है। 

इसके लिए जरूरी है कि जनभागीदारी के लिए स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जाए। साथ ही रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों और गैर-सरकारी संगठनों के सदस्यों को भी अभियान से जोड़ा जाए। जब सामूहिक प्रयास होगा, तो सड़कें साफ सुथरी ही नहीं रहेंगी बल्कि जलजमाव की वजह से फैलने वाली बीमारियों पर भी अंकुश लगेगा।

Saturday, September 20, 2025

टॉलस्टाय ने किसान को भेंट किए जूते

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे सम्मानित साहित्यकारों में गिने जाते हैं लियो टॉलस्टाय। रूस के इस महान साहित्यकार ने वार एंड पीस नामक उपन्यास रचकर रूसी साहित्य में हलचल पैदा कर दी थी। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने अहिंसा की प्रेरणा इसी पुस्तक को पढ़कर प्राप्त की थी। 

टॉलस्टाय का जन्म 9 सितंबर 1828 को मास्को से सौ मील दूर एक यास्नाया पोल्याना रियासत में हुआ था। इन माता-पिता का बचपन में ही निधन हो गया था। इनका पालन पोषण इनकी चाची तात्याना ने किया था। वह टॉलस्टॉय को एक उच्च श्रेणी का तालुकेदार बनाना चाहती थीं, लेकिन स्वभाव से मस्तमौला प्रवृत्ति का होने की वजह से वह वैसा नहीं बन पाए जैसा उनकी चाची चाहती थीं। 

उन्होंने अपने तालुके में किसानों की दशा सुधारने का कई बार प्रयास किया, लेकिन अंतत: वह नाकाम ही रहे। टॉलस्ट ने सेना की नौकरी भी की और युद्ध के दौरान ही कई रचनाएं कीं। एक बार की बात है। टालस्टाय अपने गांव में रह रहे थे। उन्होंने देखा कि एक किसान नंगे पैर खेत की जुताई कर रहा है। उसके पैर में छाले पड़े हुए थे जो फूट गए थे और उनसे खून बह रहा था। उन्होंने उस किसान से पूछा कि आपने जूते क्यों नहीं पहने हैं? उस किसान ने उत्तर दिया कि मेरे पास जूते नहीं हैं। 

मैं अपने खेतों से उतना ही अन्न उगा पाता हूं जितने में परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता है। इसके बाद टॉलस्टाय घर लौट आए। अगले दिन एक जोड़ी जूता लेकर वह खेत में पहुंचे और किसान को भेंट कर दिया। किसान ने आभार जताते हुए कहा कि आपने मेरी राह आसान कर दी है। अब मैं अपने परिवार के लिए अधिक काम कर सकूंगा। उसकी बात सुनकर टॉलस्टाय मुस्करा दिए।

फसल पंजीकरण मामले की गहनता से कराई जाए जांच

अशोक मिश्र

अब हरियाणा से मानसून विदा हो रहा है। आगामी कुछ दिनों तक कहीं छिटपुट, तो कहीं भारी बरसात हो सकती है। जब मानसून विदा होने लगता है, तो लगभग हर साल ऐसा ही होता है। हां, इस बार मानसून सीजन में हरियाणा में सामान्य से अधिक बरसात हुई। लेकिन सामान्य से अधिक बरसात और बादल फटने की घटनाएं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई बार हुईं। इन राज्यों में हुई भारी बारिश की वजह से पंजाब और हरियाणा में आई बाढ़ से लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। 

खेतों में जलजमाव की वजह से दोनों राज्यों में किसानों की फसल डूब गई और बरबाद हो गई। दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन जिस तरह दोनों राज्यों में फसल क्षतिपूर्ति के लिए दावे किए गए हैं, वह आश्चर्यजनक हैं। पंजाब के कुल 23 जिले भीषण बाढ़ की चपेट में थे। कुछ जिलों में तो अभी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है, लेकिन पंजाब के किसानों ने अभी तक क्षतिपूर्ति के लिए जो दावा किया है, उसके मुताबिक 23 जिलों में कुल चार लाख एकड़ फसल बरबाद हुई है। 

वहीं हरियाणा के कुल बारह जिलों में बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते फसलें बरबाद हुई थीं। सरकारी ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसलें बरबाद होने के जो दावे किए गए हैं, वह चकित करने वाले हैं। हरियाणा ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर 32 लाख एकड़ फसल नुकसान की बात कही जा रही है यानी पंजाब के मुकाबले आठ गुना ज्यादा।  ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर इतनी ज्यादा संख्या में किए गए दावे को लेकर सरकारी एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। इन दावों को देखते हुए आशंका जाहिर की जा रही है कि प्रदेश में कोई ऐसा गैंग सक्रिय हो उठा है जो किसानों की आड़ में प्रदेश सरकार को ठगना चाहता है। 

सरकार का अनुमान है कि फसल नुकसान का वास्तविक आंकड़ा बहुत कम है, लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसल नुकसान का दावा किया है। कुछ ऐसे किसानों के नाम पर भी दावा करने की बात कही है जो किसान अब इस दुनिया में हैं ही नहीं। उनकी काफी पहले मौत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में यह बहुत जरूरी है कि सरकार इस मामले की गहनता से जांच कराए और जो वास्तविक किसान हैं, उनको जल्द से जल्द मुआवजा उपलब्ध कराए। 

फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई ऐसा दुस्साहस न कर सके। यदि वास्तव में 32 लाख एकड़ फसल का नुकसान हुआ है, तो किसानों को उनका हक दिया जाए। मामले की गहनता से जांच बहुत जरूरी है क्योंकि किसानों के नाम पर फर्जीवाड़ा रोका ही जाना चाहिए।

Friday, September 19, 2025

आंखों की रोशनी जाने के बाद लिखी पैराडाइज लास्ट

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पैराडाइज लॉस्ट जैसी अमर कृति लिखने वाले जॉन मिल्टन का जन्म 9 दिसंबर 1608 में लंदन में हुआ था। इनके पिता साहित्य और कला प्रेमी थे। एक सुसंस्कृत परिवार में जन्म लेने का फायदा इन्हें मिला और इनके साहित्य को दुनिया भर में प्रशंसा मिली। मिल्टन की शिक्षा सेंट पॉल स्कूल तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में हुई। क्राइस्ट कॉलेज में वे सात वर्ष रहे। 

1629 ई० में उन्होंने स्नातक पास किया और 1632 में स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। इसके बाद भी इनका अध्ययन जारी रहा। जॉन मिल्टन को शेक्सपियर के बाद अंग्रेजी साहित्य के दूसरे महानतम कवि माना जाता है। कहते हैं कि जॉन मिल्टन ने कालेज समय से ही गद्य और पद्य में लिखना शुरू कर दिया था। सन 1643 को मिल्टन का विवाह मैरी पावेल से हुआ। 

शादी के एक महीने बाद ही इनकी पत्नी अपने पिता के पास यह कहते हुए लौट गईं कि मिल्टन के साथ जीवन यात्रा अंधकारमय है। लेकिन दो साल बाद वह मिल्टन के पास खुद ही लौट आई। तीन पुत्रियों की मां बनने के बाद 1652 में मेरी पावेल की मौत हो गई। दुर्भाग्य से इसी दौरान मिल्टन की आंखों से रोशनी चली गई। वह उन दिनों पैराडाइज लास्ट यानी स्वर्ग से निष्कासन नामक काव्य ग्रंथ लिख रहे थे। 

अब जब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, ऐसी स्थिति में लिखना-पढ़ना बिल्कुल बंद हो गया।  ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी तीनों बेटियों और मित्रों से अनुरोध किया कि वह जो कुछ बोल रहे हैं, उसे लिपिबद्ध कर दें। बेटियों और मित्रों के सहयोग से किसी तरह काव्य ग्रंथ पूरा हुआ। प्रकाशित होने पर पैराडाइज लॉस्ट बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन तत्कालीन शासन ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।

बात-बात पर उग्र क्यों हो जा रहे हैं हमारे नौनिहाल?

अशोक मिश्र

हमारे देश की युवा पीढ़ी इतनी उग्र क्यों हो रही है, इस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा। बात-बात पर आक्रामक हो जाने वाली नई पीढ़ी ऐसा क्यों कर रही है? यह समस्या किसी एक परिवार की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की समस्या है। नारनौल जिले के कनीना खंड के खेड़ी तलवाना गांव की रहने वाली एक महिला की उसके बेटे ने पीट-पीटकर जयपुर में हत्या कर दी। हत्या का कारण बहुत ही मामूली बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वाई-फाई कनेक्शन को लेकर दोनों में कहा सुनी हुई। 

इसके बाद उसने अपनी मां को डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। उसे बचाने के लिए जब सेवानिवृत्त फौजी पिता और बहनें आईं, तो उनसे भी मारपीट की। बुरी तरह घायल महिला को जब अस्पताल पहुंचाया गया, तो उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। समाज में इस तरह की बहुत सारी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। कहीं कोई पिता अपनी बेटी की हत्या कर रहा है, तो कहीं कोई भाई अपने ही भाई-बहन को जान से मार दे रहा है। इन घटनाओं के पीछे कोई बहुत बड़े कारण नहीं होते हैं। 

बस, मामूली सी बातें होती हैं और युवा उग्र होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं। आखिर क्यों, युवाओं में यह प्रवृत्ति क्यों पनप रही है? इसके पीछे सामाजिक ढांचे आए बदलाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। हो यह रहा है कि एकल परिवार की अवधारणा के चलते ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते जा रहे हैं। बच्चा दिन भर अकेले ही घर में रह रहा है। स्कूल या कालेज से आने के बाद बच्चा क्या कर रहा है, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। शाम को घर लौटने पर थके मां-बाप के पास अपने बच्चे के लिएभी समय नहीं होता है। ऐसी दशा में वह भीतर ही भीतर कुंठित होने लगते हैं। 

उनके भीतर मां-पिता के ही प्रति नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी आक्रोश पनपने लगता है। वह विद्रोही हो उठते हैं। थोड़ी थोड़ी बात पर ही उनका गुस्सा उबाल मारने लगता है। हिंसक हो जाते हैं। ऊपर से  परिवार पर बढ़ता महंगाई का बोझ, बेरोजगारी और माता-पिता की अपनी संतानों से बढ़ती अपेक्षाएं उन्हें उग्र बना रही हैं। ऐसा नहीं है कि गरीबी, बेकारी और महंगाई का दबाव पहले नहीं था, तब संयुक्त परिवार हुआ करते थे। परिवार के बच्चों पर सबकी निगाह रहा करती थी। 

बच्चे अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों से आत्मिक रूप से जुड़े रहते थे। तब यदि कोई परेशानी हुआ करती थी, तो  परिवार के लोग मिलकर उसे सुलझा लिया करते थे। संयुक्त परिवार हर परिस्थिति में एक सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करता था। आपस में प्यार से लड़-झगड़कर अपने आक्रोश को निकाल दिया करते थे।

Thursday, September 18, 2025

अहंकार त्यागकर ही सीखा जा सकता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में मनुष्य के जीवन को बरबाद कर देने वाले छह विकारों की चर्चा की गई है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नाम के इन छह विकारों से मनुष्य को हमेशा बचकर रहने की सलाह दी गई है। इन छह अवगुणों से जो भी ग्रसित हुआ, उसके जीवन में पतन की शुरुआत निश्चित मानी जाती है। काम और क्रोध के बाद अहंकार यानी मद तो व्यक्ति को सबसे पहले पतन की ओर ले जाते हैं। 

व्यक्ति जीवन भर उलझता रहता है, लेकिन जीवन की पहेलियां सुलझ नहीं पाती हैं। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। किसी राज्य में एक युवा गुरुकुल में तीरंदाजी सीख रहा था। कई साल के अभ्यास के बाद वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया। धीरे-धीरे उसमें अहंकार आता गया और उसने अपने को दुनिया का सबसे बड़ा तीरंदाज मान लिया। अब वह जगह-जगह जाकर लोगों को तीरंदाजी के लिए ललकारता और हराने के बाद हारने वाले का खूब मजाक उड़ाता। 

धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने ही गुरु को तीरंदाजी के लिए चुनौती दे दी। उसकी चुनौती पर गुरु जी मुस्कुराए और उससे अपने पीछे आने को कहा। गुरु जी उसे लेकर एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां एक जर्जर पुल बना हुआ था। उस जर्जर पुल के बीचोबीच में जाकर गुरु जी ने अपने तरकश से तीर निकाला और दूर खड़े एक पेड़ का निशाना लगाया। 

तीर जाकर पेड़ में आधा धंस गया। गुरु ने शिष्य से कहा कि अब तुम निशाना लगाओ। उस पुल पर डरता-डरता शिष्य पहुंचा और पेड़ का निशाना लगाया। शिष्य का तीर लक्ष्य तक ही नहीं पहुंच पाया। शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। गुरु जी ने कहा कि जब तक सीखने की ललक रहती है, तभी तक कोई सीख सकता है। अहंकार सीखे हुए को भी भुला देता है।

हरियाणा में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट की ही तरह हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट ने भी आवारा कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या और इंसानों पर हमला करने की बढ़ती घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह जल्दी से जल्दी कुत्तों के काटने की संख्या और अन्य विवरण दें। इसके साथ ही यह भी बताएं कि कुत्तों की नसबंदी जैसे कार्यक्रमों की वास्तविक स्थिति क्या है? आवारा कुत्तों के टीकाकरण के बारे में भी कोर्ट ने रिपोर्ट तलब की है। हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान दोनों राज्यों को यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट इस संबंध में दायर अवमानना याचिकाओं को अब सुप्रीमकोर्ट भेजेगा। सुप्रीमकोर्ट पहले ही आवारा कुत्तों के बारे में दिशा निर्देश दे चुका है। 

हरियाणा में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएं कम होती नहीं दिख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा में रोजाना लगभग सौ घटनाएं कुत्तों के काटने के सामने आते हैं। पिछले एक दशक में अब तक लगभग 12 लाख घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो चुकी हैं। बहुत सारी ऐसी भी घटनाएं होने का  अनुमान है जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हुई हैं। ज्यादातर लोग परिवार के किसी सदस्य को कुत्ते के काटने पर सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की जगह निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेते हैं। 

ऐसे मामले सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। वैसे देश भर में शायद हरियाणा पहला राज्य है जिसने गरीब व्यक्ति को कुत्ते के काटने पर न्यूनतम दस हजार रुपये और काटने पर चमड़ी उधड़ जाने पर बीस हजार रुपये मुआवजे का प्रावधान किया है। वैसे यह बात सच है कि प्रदेश में कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सभी जिलों में शायद ही कोई ऐसी गली होगी जिसमें आवारा कुत्ते दिखाई न देते हों। हर गली, हर चौराहे पर कुत्तों के झुंड दिखाई देते हैं। 

अगर कोई बच्चा इस झुंड के सामने पड़ जाए, तो उसे नोच नोच कर घायल कर देते हैं। कई बच्चों की तो मौत भी हो जाती है। रात में अगर कोई अकेला व्यक्ति किसी गली से   गुजर रहा हो, तो यह झुंड बनाकर हमला कर देते हैं। कई बार झुंड बनाकर यह कुत्ते व्यक्ति को इतना घायल कर देते हैं कि उसकी मौत तक हो जाती है। स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों की नसबंदी करने में तत्परता दिखानी चाहिए। इनका टीकाकरण बहुत आवश्यक है ताकि किसी भी व्यक्ति की कुत्तों के काटने पर रैबीज की वजह से जान न जाए। 

सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाला इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए ताकि कोई भी बिना इंजेक्शन लगवाए जाने न पाए। आए दिन सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाले इंजेक्शन की कमी की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं।

Wednesday, September 17, 2025

वक्त के बहुत पाबंद थे जार्ज वाशिंगटन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जार्ज वाशिंगटन को संयुक्त राज्य अमेरिका का संस्थापक और पिता माना जाता है। वह अमेरिका के 30 अप्रैल 1789 से 4 मार्च 1797 तक राष्ट्रपति भी रहे।1775 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमेरिका में बगावत शुरू हुई, तो उन्हें महाद्वीपीय सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने अमेरिका की स्वतंत्रता के लिए जी जान से प्रयास किया और अन्य क्रांतिकारियों की मदद से आखिरकार अपने देश को आजाद कराने में सफल हो गए। 

जार्ज वाशिंगटन समय के बहुत पाबंद थे। वह हर काम नियत समय पर ही करना पसंद करते थे। वह सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखते थे। उनकी सादगी को देखकर लोगों को ताज्जुब होता था कि अमेरिका का राष्ट्रपति इतना सादा जीवन जीता है। राष्ट्रपति पद संभालने के लगभग तीन महीने बाद की घटना है। उन्हीं दिनों अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव हुए थे। 

उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के चुने हुए प्रतिनिधियों को एक दिन डिनर पर आमंत्रित किया। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि लोगों से परिचय भी हो जाएगा और वह उनके दायित्वों को उन्हें बता सकें। डिनर का जब समय हुआ, तब तक कोई भी प्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा था। जब डिनर का समय हुआ, तो रसोइये ने उनको भोजन परोस दिया। वह भोजन कर ही रहे थे कि तब तक सारे प्रतिनिधि भी पहुंच गए। 

उन्हें राष्ट्रपति को भोजन करता हुआ देखकर आश्चर्य हुआ कि मेहमान के आने से पहले भोजन कर रहे हैं। तब वाशिंगटन ने कहा कि मेरा हर काम का समय नियत है। समय बहुत मूल्यवान है। इसके एक-एक क्षण को बरबाद नहीं करना चाहिए। यह सुनकर सभी प्रतिनिधियों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने क्षमा मांगते हुए हर काम समय पर करने का वायदा किया।

परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है हादसे में दिव्यांग हुआ व्यक्ति

अशोक मिश्र

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने अनूप सिंह के मामले जो फैसला सुनाया है, वह न केवल सराहनीय है, वरन भविष्य में ऐसे ही कई मामलों की नजर भी बनेगा। दरअसल, मामला केवल अनूप सिंह का ही नहीं है, ऐसे न जाने कितने मामले देश और प्रदेश में है जिनके फैसले मानवीय आधार पर नहीं होते रहे हैं और शायद भविष्य में भी हों। अनूप सिंह का मामला 2014 का है। 5 जनवरी 2014 को अनूप सिंह एक सड़क हादसे का शिकार हुए। काफी इलाज कराया गया, लेकिन हादसे की वजह से उनका बायां पैर घुटने के पास से काटना पड़ा। 

बाद में जब अनूप सिंह अस्पताल से निकले, तो उन्होंने अपनी दिव्यांगता और हादसे के लिए इंश्योरेंस कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराया। हिसार एमएसीटी ने फरवरी 2016 को निर्देश दिया कि कंपनी अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करे। इंश्योरेंस कंपनी ने अनूप सिंह की दिव्यांगता को 60 प्रतिशत बताते हुए फैसले को मानने से इंकार किया और हाईकोर्ट में अपील की। उधर, अनूप सिंह ने भी क्रॉस आब्जेक्शन अपील करते हुए मुआवजे की राशि बढ़ाने की अपील की। 

हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए 24 लाख 51 हजार नौ सौ कर दिया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि दिव्यांगता का आकलन शरीर नुकसान के साथ-साथ उसके जीवन पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए। अब अनूप सिंह का मामला लें। वह जब हादसे का शिकार हुए थे, तब वह सीआरपीएफ भर्ती परीक्षा पास कर चुके थे और इंटरव्यू आदि के बाद शायद सीआरपीएफ में नौकरी भी पा जाते। लेकिन हादसे के बाद न केवल वह किसी भी तरह की नौकरी के अयोग्य हो गए, बल्कि वह खेती-किसानी या मजदूरी के लायक भी नहीं रह गए। 

एक हादसे ने न केवल उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया, बल्कि भावी जीवन की राह भी दुश्वार कर दी। वह जहां परिवार का सहारा बनने जा रहे थे,वहीं अब वह परिवार पर ही बोझ बनकर रह गए। यह केवल अनूप सिंह की ही कहानी नहीं है। हर साल देश और प्रदेश में हादसे का शिकार होने वाले हजारों लोगों की यही कहानी है। हादसे का शिकार होने के बाद काफी लोगों का जीवन नरक के समान हो जाता है। अगर अविवाहित हैं, तो विवाह की संभानवाएं भी खत्म हो जाती है। 

विवाह हो गया है, तो पत्नी और बच्चों का जीवन त्रासद हो जाता है। दिव्यांग हुए लोग परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं। जो व्यक्ति कल तक अपने परिवार की धुरी था, वही हादसे के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने जीवन पर पड़ने वाले असर को भी मुआवजे का आधार बनाया है, तो वह सराहनीय है।